पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया कि आरटीआई में जानकारी एकत्र करने को याचिका दायर करने में देरी का आधार नहीं बनाया जा सकता। जस्टिस आरएन रैना ने फैसले में कहा कि आरटीआई एक्ट के तहत जानकारी जमा करने के दौरान घड़ी की सुई नहीं रुकती। ऐसे में तय समय सीमा के बाद याचिका दायर करने के लिए इस दलील को स्वीकार नहीं किया जा सकता।
आरटीआई में जानकारी मिलने की दलील भी कोर्ट में दी जा सकती है और कोर्ट में याचिका दायर कर भी जानकारी मांगी जा सकती है। लेकिन ऐसा नहीं किया गया और आरटीआई के तहत एक के बाद एक जानकारी हासिल करने का प्रयास करते हुए याचिका दायर करने में देरी का आधार बताया गया जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। ऐसे में कोर्ट ने केस की मेरिट में जाकर मामले में दखल देने से इनकार करते हुए याचिका खारिज कर दी।
हरियाणा हेल्थ डिपार्टमेंट में डेंटल सर्जन क्लास टू के पद को चुनौती देते हुए याची सपना कक्कड़ ने कहा कि पद के लिए 25 नवंबर 2013 को आवेदन मांगे गए थे। छह जुलाई 2014 को स्क्रीनिंग टेस्ट लिया गया। याचीकाकर्त्ता ने कहा कि इसके बाद आरटीआई में उसने संबंधित दस्तावेजों को मांगा जिससे नियुक्ति प्रक्रिया को चुनौती दी जा सके।
जस्टिस रैना ने फैसले में कहा कि हरियाणा राज्य सूचना आयोग से पहली बार संबंधित मामले में सात जुलाई 2014 को सूचना देने की मांग की गई थी। इसे ढाई साल हो चुके हैं। मौजूदा समय में नियुक्ति प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और चयनित उम्मीदवारों को नियुक्ति ऑफर की जा चुकी है। दूसरी तरफ आरटीआई में जानकारी मांगी जा सकती है लेकिन इस जानकारी को जुटाने के लिए सवालों पर सवाल करते रहना भी सही नहीं ठहराया जा सकता। याची इसके लिए कोर्ट का सहारा ले सकती है। आरटीआई में जानकारी मिलने की दलील भी कोर्ट में दी जा सकती है और कोर्ट में याचिका दायर कर भी जानकारी मांगी जा सकती है। लेकिन ऐसा नहीं किया गया और आरटीआई के तहत एक के बाद एक जानकारी हासिल करने का प्रयास करते हुए याचिका दायर करने में देरी का आधार बताया गया जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। ऐसे में कोर्ट ने केस की मेरिट में जाकर मामले में दखल देने से इनकार करते हुए याचिका खारिज कर दी।
एक टिप्पणी भेजें